(नागपत्री एक रहस्य-17)
नाग कन्याओं का आशीर्वाद पाकर जैसे ही अगला दरवाजा खुला , तब विकास और सुधा जो अब तक यह जान चुके थे, यह संपूर्ण मंदिर रहस्य की खान है, और इसलिए वे अपने मन विवेक और वाणी को बड़ी सजगता से बिना किसी अहंकार के साथ उपयोग कर रहे थे।
उन्होंने देखा कि जिस दरवाजे से उनका प्रवेश हुआ था, वह अपने आप विलुप्त हो गया, दरवाजे के भीतर प्रवेश करते ही उन्हें ऐसा लगा जैसे वह फूल की भांति हल्के और शरीर विहीन हो चुके हैं, उस कक्ष में हल्दी और कुमकुम की वर्षा के साथ केसर की मिश्रित खुशबू निरंतर प्रभावित हो रही थी, सुधा यह देखकर आश्चर्य चकित थी, कि यह वर्षा बिना किसी स्रोत के निरंतर वायु में प्रवाहित होते जा रही थी,
महज कुछ कदम की दूरी पर आगे बढ़ते ही उन्होंने देखा कि दो पुरुष और एक स्त्री के कटे हुए शीश कुछ आसन पर रखे हुए हैं, और ठीक उनके ऊपर निरंतर फूलों की वर्षा हो रही है और नीचे लिखा हुआ था, इन महान आत्माओं का वर्णन करें और शिव दर्शन का लाभ उठाएं, या फिर वापस चले जाओ।
सुधा को कोई खास ज्ञान शास्त्रों का था नहीं, और रहा विकास का तो उसने चंद कहानियां अपने पूर्वजों के मुंह से सुनी थी, फिर भी उन दोनों ने यह सोच उन शीश को नमन किया कि अगर इस स्थान पर इसका वर्णन करना अनिवार्य है, तो यह कोई सामान्य शीश नहीं हो सकते,
तभी सुधा को याद आया कि उसकी पिताजी बचपन में कहा करते थें , कि जहां समस्या होगी उसी स्थान पर उसका हल भी मिलेगा, तो यह जान वह आसपास देखने लगे की शायद कुछ सुराग मिल जाये, और विकास भी उसका अनुसरण करने लगा।
उन्होंने देखा कि ठीक दूसरे दिशा में एक परशा, सुदर्शन चक्र और त्रिशूल रखा हुआ था, तब तो शायद जैसे विकास और सुधा के लिए सवाल का जवाब बहुत हद तक आसान हो गया,
उन्होंने मुस्कुराते हुए पहले सवाल का जवाब दिया - हे नाग माता मानव का अस्थिर हो जाना बहुत हद तक स्वाभाविक है, और वैसे भी इस सृष्टि में बिना प्रभु की इच्छा के कुछ भी घटित नहीं होता, और शायद इसी कारण आपको शोक करने की आवश्यकता नहीं, आपके पुत्र जैसा आज्ञाकारी और पराक्रम में दूजा कोई नहीं, हम आपके साथ आपके पति ऋषि जमदग्नि और ईश्वर स्वरूप श्री परशुराम जी को प्रणाम करते हैं, इतना कहते ही वह स्त्री का शीश अपने स्थान पर विलुप्त हो गया।
तत्पश्चात वहां एक सुंदर बालक का शीश देख विकास ने कहा, हे मातृ भक्त आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम, आपको तो स्वयं मां जगत जननी ने रचा है, अपने उबटन से रचना की और अपना गण मान आपका नाम श्री गणेश रखा,
भले ही यह जगत कुछ भी कहें , परंतु यह प्रभु लीला भी अवश्य किसी विशेष कारण से ही रची गई होगी, क्योंकि आत्मज्ञानी और दिव्यदृष्टि होने के बाद भी एक जगत पिता परमेश्वर के हाथो अपने पुत्र का शीश काटा जाना कोई लीला नहीं तो भला क्या है,
अगर मेरा ज्ञान निर्मल हो तो हे प्रथम पूज्य श्री गणेश हमें मंदिर के अगले द्वार पर जाने और शिव दर्शन की अनुमति प्रदान करें, यह सुनते ही वह दूसरा शीश भी गायब हो गया, और शीतल हवाएं चलने लगी......
सुमधुर बासुरी की ध्वनि सुनाई देने लगी, जिसे सुन सुधा को उसके पिताजी की सुनाई हुई खाटू श्याम जी की काहनी याद आ गयी।
वह अक्सर अपने पिताजी के साथ उनके मंदिर जाया करती थी, इसीलिए उसे घटोत्कच पुत्र बर्बरीक जी की कथा याद थी, उन्होंने घुंघराले बाल वाले उस शीश को नमन किया,
और कहा, हे श्रेष्ठ मात्र तीन बाणों से अपने संपूर्ण शत्रु दल को समाप्त करने की क्षमता रखने के पश्चात प्रभु श्री कृष्ण की आगे उनकी मंशा जान, अपने शीश का दान करने वाले शूरवीर महात्मा बर्बरीक और कलयुग के खाटू श्याम जी को हमारा सादर प्रणाम।
आप सभी के दर्शन के लिए हम दोनों आभारी हैं, कृपया हमें शिव दर्शन की आज्ञा प्रदान करे, इतना सुनते ही एक दिव्य रोशनी ने जो उस शीश से निकली, जिसने विकास और सुधा को एक विशेष आभामंडल प्रदान किया, और वह अपने ही स्थान पर विलुप्त हो गया, जिसे देख विकास और सुधा विचार में पड़ गए,
उन्होंने मन ही मन मां पार्वती का स्मरण कर शिव पूजन की अनुमति चाही, और तभी वहां एक ज्योतिर्लिंग अत्यंत प्रकाश के साथ उपस्थित हो गया, उन्हीं के साथ एक अत्यंत सुंदर नाग जो अपने हाथ में अमृत कलस और पूजन सामग्री ले उपस्थित था, जो विकास और सुधा के लिए अब सामान्य था,
दोनों ने शिव पूजन कर पूर्णाहुति दी और ठीक पिछली बार की तरह ही यह शिवलिंग भी अपने स्थान पर विलुप्त हो गया, उसी समय अचानक एक तेज़ फुंकार ने जैसे सारा वातावरण भयभीत कर दिया,विकास और सुधा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कि आखिर यह क्या हो रहा है?
उन दोनों के चेहरों पर भय साफ दिखने लगा, उनकी धड़कने तेज हो गई ,
फिर तीसरा दरवाजा खुला ही था, की तेज फुंकार ने सुधा और विकास के रोंगटे खड़े कर दिए, दोनों के चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा था, जैसे ही उन्होंने पलट कर देखा एक विशाल नाग अपने अनेको फन फैलाये सामने अत्यंत फुंकार के साथ उपस्थित हो गया, जैसे उसे इन दोनों की उपस्थिति पसंद नहीं आ रही थी।
वे जैसे ही आगे बड़े दोनों ने डर के मारे आंखे बंद कर ली, इतना विकराल रूप इसके पहले कभी उन्होंने सोचा भी नहीं था, तभी अचानक जैसे किसी तेज विस्फोट का स्वर गूंजा और एक जानी पहचानी आवाज सुनाई दी, लेकिन फिर भी वे दोनों अपनी आंखे चाहा कर भी खोल नहीं पा रहे थे...
आखिर वहाँ हो क्या रहा था, वे सिर्फ स्तुति कर रहे थे की जीवित बच जाये, वही काफी है। उनका डर साफ नजर आ रहा था, की वे दोनों अपनी अंतरात्मा तक उस स्वरूप को समाहित कर चुके थे, और न जाने वही डर उन्हें शक्ति भी प्रदान करने लगा।
वह विकराल रूप उन्हें सौम्य जान पड़ने लगा, और शक्ति प्रदान करने लगा, उन्होंने आंखे खोलने की कोशिश की लेकिन तेज चलती अँधियों ने उन्हें विवश कर दिया, लेकिन तभी अचानक शांत हुए वातावरण ने उन्हें अचंभित कर दिया, और जैसे ही आंखे खुली तो वो आश्चर्य चकित थे, की विकास के पूर्वज उस नाग से जैसे किसी अन्य भाषा में बात कर रहे थे, दोनों का डर और आश्चर्य एक साथ नजर आ रहा था।
क्रमशः.....
Babita patel
15-Aug-2023 02:02 PM
Nice
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